कहा लुकिगयाे खै चङ्गा सपनाकाे
लत्पतिएकाे देख्छु रङ्ग सपनाकाे

के यहि नै थियाे त हिड्न चाहेकाे बाटाे
कि लड्बडाएकाे हाे ढङ्ग सपनाकाे

बन्नुथ्याे जाे उडान, याे युगकाे याे जुगकाे
अाफै पाे काटेछु पंख सपनाकाे

अब चिच्याएर के जाग्थ्याे र अात्मा
जब शुन्य शुन्य भाे अङ्क सपनाकाे

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