मुक्तक-२७

एक झाेक्का हावा आयाे, मन बगाएर गयाे
निभिसकेकाे खरानीमा आगाे लगाएर गयाे
खुब साेच्थे, छ मेराे चट्टानजस्ताे मन
यही मनमा काेमल रहर जगाएर गयाे

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